रविवार, जनवरी 03, 2010

ये कैसी ब्रॉड थिंकिंग है!
कल के दैनिक भास्कर अखबार का पन्ना पलटते हुए मेरी नज़र एक खबर पर टिक गई। वो था "चीन: इन्टरनेट पोर्नोग्राफी में ५००० गिरफ्तार". इस खबर के अनुसार चीनी सरकार ने ९००० अश्लील वेबसाइटस पर पाबन्दी लगा दी है. इसके इस्तेमाल की जानकारी देने वालों को १५०० डॉलर का ईनाम भी घोषित किया गया है. चीनी सरकार का कहना है कि ऐसा वे सुरक्षा और नैतिक कारणों से कर रहे हैं और वे नहीं चाहते कि इन्टरनेट के बहाने समाज में अश्लीलता फैले.

नैतिकता की बात पढ़ कर मुझे अपने एक नव-परिचित बैंकर मित्र से हाल ही में "वेश्यावृत्ति को कानूनी बनाने" के मसले पर हुई बहस की याद ताज़ा हो गयी। मेरे मित्र इसे कानूनी बनाने के पक्ष में थे. मेरा सवाल था कि भारत जैसे देश में वेश्यावृत्ति क्या इतनी गंभीर समस्या बन गयी है कि इसे कानूनी जामा पहनाने की जरूरत पड़ सकती है? क्या सेक्स आदमी की इतनी बड़ी जरूरत के रूप में उभर कर सामने आया है कि विवाह जैसी सामाजिक व्यवस्था में रहने के बावजूद उसका वेश्यालयों में जाना अनिवार्य हो गया है?
मेरे मित्र इस बात से सहमत नहीं हुए। उनका मानना है था कि नैतिकता से जुडी सामाजिक अवधारणाओं को ध्यान में रखते हुए यदि वेश्यावृत्ति को कानूनी नहीं बनाया जाता तो यह किसी आदमी के साथ भी नाइंसाफी होगी. नैतिकता का रोना रोते हुए हम आम आदमी को यह स्वतंत्रता नहीं देते तो डेमोक्रेसी का कोई मतलब नहीं है और ऐसे विचारों को संकीर्ण मानसिकता वाले लोग ही सपोर्ट करते हैं. उनका कहना था कि भारत में बड़ी संख्या में लोग घूमने-फिरने या काम के बहाने थाईलैंड जाना पसंद करते हैं. ये बात जगजाहिर है कि थाईलैंड वेश्यविरित्ति के मामले में दुनिया भर में अपनी अलग जगह बना चुका है. सबसे मजेदार बात यह है कि वेश्यावृत्ति थाईलैंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन गयी है.
मैंने उनसे पूछा कि क्या सेक्स हमारी वैसी ही जरूरत बन चुकी है जैसे हमें २४ घंटे में कम-से-कम दो बार भोजन की जरूरत होती है? मेरा मानना है कि यदि नैतिकता को धारण किये हुए ही सही या असमाजिक या व्यभिचारी कहलाने के डर से ही सही, आदमी इस जरूरत को सीमित रखता है तो सेक्स कभी समस्या बनेगी ही नहीं और वेश्यावृत्ति को कानूनी बनाने का सवाल ही नहीं खड़ा होगा।
उन्होंने मुझे "नैरो माइंडेड" का खिताब दे कर इस बहस से खुद को किनारा कर लिया। मैंने भी इस बहस को यहीं विराम देना उचित समझा लेकिन एक सवाल मेरे जेहन में अभी भी है....वो ये कि "क्या नैतिकता को आज की युवा पीढ़ी किताबी बातें और ढ़कोसला समझती है?" यदि नहीं तो मुझे अपनी मानसिकता को "ब्रॉड" बनाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी.

1 टिप्पणी:

Sundip Kumar Singh ने कहा…

सच कहें तो यही आधुनिकता आज सारी बुराइयों का पर्दा बन चुकी है. ये समाज और उसकी नैतिकता का गिरा हुआ स्तर ही है कि आज जो जितना भौंडा है वो उतना बड़ा स्टार बन कर टीवी के परदे पर दिखाई देता रहता है. यही लोग आज की युवा पीढ़ी के रोल मॉडल बन रहे है और हम अपनी युवा पीढ़ी को उनकी सच्चाई न बताकर अगर चुपचाप उनके लाइफ स्टाइल को स्वीकार करने दे रहे हैं तो समाज के स्तर गिरने के हम भी दोषी हैं...