शनिवार, फ़रवरी 13, 2010


प्यार के वारदात होने दो......

अभी प्रेम दिवस से पहली शाम को बेंगलुरु में एक हादसा हो गया। शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की तर्ज़ पर बने विवादस्पद संगठन श्रीराम सेना के मुखिया प्रमोद मुतालिक का मुंह काला हो गया। ये घटना तब हुई जब श्री मुतालिक वैलेन्ताइन्स डे पर होने वाली एक बहस में हिस्सा लेने वाले थे. इससे पहले कि श्री मुतालिक कुछ कहें, कुछ युवा प्रेमियों ने उन्हें मंच से उतर उनके मुंह पर कालिख पोत दी. बेचारे श्री मुतालिक....अभी पिछले साल ही तो 'प्रेम के दिन' इन्होंने कुछ प्रेमी युगलों की पिटाई कर अपनी विशेष पहचान बनाई थी. प्रेम के दिन के पहले ही इस तरह के हादसों को देखते हुए पूरे देश ख़ास कर महानगरों की पुलिस अभी से ही चौकस हो गयी है.

बाज़ारवाद : वैलेंटाइन डे की जननी
वर्तमान पत्रकारिता की अमर ज्योति और महान लेखक प्रभास जोशी कहते थे - " वैलेंटाइन डे की जननी बाज़ारवाद है. ये न तो हमारी सभ्यता से जुड़ा है, न ही हमारी संस्कृति से इसका कोई सरोकार है." यह बात सौ फीसदी सही है. कुछ निजी कंपनियों ने अपने फायदे के लिए वैलेंटाइन डे का इतना प्रचार प्रसार किया कि ये हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया. जाने-अनजाने में सही लेकिन इस काम में उनका साथ मीडिया ने भी बखूबी निभाया. फिल्मों के माध्यम से प्रेम के इजहार करने का ये विशेष दिन आँखों के रास्ते दिल में उतर गया. अब तो हर आदमी, चाहे वो आम हो या ख़ास, वैलेंटाइन डे के बारे में जानता है.

चिंता या चिंतन
सवाल उठता है कि "क्या वैलेंटाइन डे सचमुच चिंता का विषय है?" क्या ये ख़ुशी का दिन नहीं है! प्रेम तो जीवन के लिए उतना ही ज़रूरी है जैसे खाने के लिए अन्न, साँस लेने के लिए हवा और पीने के लिए पानी. दूसरे शब्दों में कहें तो प्रेम हमारे आत्मस्वरुप की अभिव्यक्ति है. प्रेम से हम हैं और हम से प्रेम.

प्रेम है शाश्वत, लेकिन आज के दौर में इसकी अभिव्यक्ति क्षणिक हो गयी है. ये है तो निर्विकार, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप विकृत हो गया है.

प्रेम का वास्तविक स्वरुप
यदि प्रेम है तो सब से है और सब के लिए है. अगर ऐसा नहीं है तो ये कुछ देर का आकर्षण है. फिर ये प्रेम नहीं है...भावनाओं का आंशिक खिचाव है.

प्रेम और सेक्स में सम्बन्ध
आज के समय में प्रेम और सेक्स एक-दूसरे के पूरक हो गए हैं. इन परिस्थितियों में सेक्स-संबंधों को समझना बहुत ज़रूरी है.

मेरी समझ में सेक्स 'पूर्ण समर्पण' है 'एक प्राणी का दूसरे के लिए'. अगर एक औरत किसी से शारीरिक सम्बन्ध बनाये तो इसके तीन ही वजह हो सकती हैं....पहला ये कि वो उसके प्रति समर्पण के उस स्तर तक पहुँच कि आपस में कोई पर्दा रखने की जरूरत नहीं रही. यानि औरत का उस आदमी के प्रति विश्वास इतना गहरा हो गया कि उसने अपना स्वाभिमान जो किसी भी औरत के लिए सर्वोपरि होता है, आदमी के हवाले कर दिया. दूसरा ये कि वो कामातुर है जिसकी वजह से उसे जिस्मानी-सम्बन्ध बनाने की जरूरत पड़ी. और तीसरा ये कि वो मानसिक रोगी है. ये सारी बातें कुछ हद तक मर्दों के लिए भी लागू होती हैं.

अमर है प्रेम
रूह की तरह प्रेम भी अजर-अमर है. कोई ये कहे कि आज के समय में प्रेम मर चुका है या आज की युवा पीढ़ी को प्रेम समझ में नहीं आता और प्रेम तो हमारे ज़माने में होता था, तो ये सब उसकी निजी ज़िंदगी की निराशा है. या तो उसे अब तक प्रेम करने का मौका नही मिला या मिला भी तो उसने सामाजिक बंधनों को तरजीह दी और खुद को सही और ग़लत की कसौटी पर कसता रहा. अपने आप को समाज में शरीफ दिखाने के चक्कर में खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली और प्रेम से दूर होता चला गया.

भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर
प्रेम का असली स्वरूप तो आध्यात्मिक है. हमें इसकी भौतिकता का अहसास आम-जनजीवन में होता रहता है लेकिन इसके आध्यात्मिक स्वरूप का आभास कभी-कभी ही होता है. हमारे पड़ोसियों का हमसे हाल-चाल पूछना भी आध्यात्मिक प्रेम की भौतिक अभिव्यक्ति है. इसकी आध्यात्मिकता को समझने के लिए ज़माने की वास्तविकता को जानना होगा, उसपर विचार करना होगा. इसी रास्ते हम अपने आनंदमय स्वरूप तक पहुँच सकते हैं और प्रेम की अध्यात्मिकता को आत्मसात कर सकते हैं.

तीनों बुद्धिजीवियों से अनुरोध
अंत में एक बार फिर श्री मुतालिक से जुड़ी घटना को देखते हुए प्रेमियों में बढ़ती हिंसा, असहिष्णुता और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हरकतों के प्रति चिंता व्यक्त करता हूँ. और बाला साहब ठाकरे के साथ-साथ उनके नक्शेकदम पर चल रहे राज ठाकरे से अनुरोध करता हूँ कि कम से कम इस प्रेम दिवस पर अपने मानुसों को उनके अस्तबल से न निकलने दें. अन्यथा किसी भी दुर्घटना की नैतिक ज़िम्मेदारी न तो प्रशासन लेगी और न ही देश के युवा.





5 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

अपने मानुसों को उनके अस्तबल से न निकलने दें.nice

Mohican yells ने कहा…

मैं वेलेंटाइन दिवस का बिलकुल भी समर्थन नहीं करता............ पर जो मुतालिक के साथ हुआ वह बिलकुल सही हुआ.........सबको अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने का हक़ है..........मुतालिक जैसे ठेकेदारों को लोगो को सिखाने का कोई हक़ नहीं की उन्हें कैसे रहना चाहिए.

Anil Kumar ने कहा…

अजी मुझे तो इन "दिवसों" से खासी नफरत सी हो चली है. वह इसलिये कि दुनिया में हर अच्छी चीज के लिये एक "दिवस" बना दिया गया है. बाकी सारे साल जैसे वह चीज होती ही न हो. जैसे प्रेम सिर्फ चौदह फरवरी को ही होता हो. संत वैलेंटाइन अपनी बेटी से इतना प्यार करते थे कि उनके मरण दिवस को प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. फिर प्रेम तो प्रेम, चिरकुटपन को ही प्रेम का नाम दिया जाने लगा. आगे भी जाने क्या-क्या होगा, संत वैलेंटाइन की आत्मा ही जाने.

प्रेम रोज होता है, हर पल होता है, दिल की हर एक धडकन के साथ प्रेम रहता है. इस एक दिन में बांधा जाना कुछ उचित नहीं.

मुतालिक और उनके जैसे सभी समाज के ठेकेदारों के मुंह पर तो क्या, उनके सारे जीवन पर कालिख पोत दी जानी चाहिये. यह भारत है, चीन नहीं जहाँ चंद लोग करोडों लोगों के भाग्य का फैसला करें. स्वतंत्र देश के निवासियों को डराने की सजा के तौर पर कालिख पोतना कोई बडी बात नहीं. स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिये मृत्युदंड भी कम है.

रही बात बाजारीकरण की, तो आज कौनसी ऐसी चीज है जिसका बाजारीकरण नहीं हुआ हो? भगवान से लेकर भिखारी तक, अमीरी से लेकर गरीबी तक, जन्म से लेकर मौत तक, इनकम से लेकर इनकम टैक्स तक - सब कुछ बाजार के रंग में पुत चुका है. बाजारीकरण हो, लेकिन मर्यादाओं का ध्यान रखा जाना चाहिये.

बेनामी ने कहा…

कितना बकवास लेख है यह, अश्लीलता बढती जा रही है, आजकल प्रेम नाममात्र भी नहीं होता केवल सेक्स होता है. अपनी बहन को बहन और दूसरे कि बहन को माल के रूप में देखना कितना बकवास है. जो लोग इसका समर्थन करते हैं उनको समझ उसीदिन आता है जब उसकी बहन रात-रात भर घर से बाहर रहे प्रेम के बहाने सेक्स होता है आजकल. और प्राचीन विचारधारा के बारे में जो तुने लिखा है तेरी गलत सोच को दर्शाता है. आज लाज शर्म तो लड़की और लडको में है ही नहीं. पर उसका समर्थन करना काम के प्यासे लोगो को बहुत अच्छा लगता है.

upasak ने कहा…

और खुद को सही और ग़लत की कसौटी पर कसता रहा. अपने आप को समाज में शरीफ दिखाने के चक्कर में खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली और प्रेम से दूर होता चला गया.







हाहहाहा हसी आती है तेरे ऊपर, अपने बुजुर्गो का सम्मान कर, जब तू बुजुर्ग होगा तभी सीखेगा. अपने जमाना बहुत अच्छा था.